
ज्ञानं महेस्वर दीक्षित

श्लोक को आगे और गहराई से समझेंगे लेकिन उससे पहले महा शिवरात्रि की चर्चा करते है।
शिवरात्रि हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्देशी तिथि को मनाई जाती है लेकिन फाल्गुन मास की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि में शिव को किस तरह हम समझे और उनसे क्या सीखे ,ये महत्वपूर्ण है।
शिव के राशियमयी रूप से और स्वरुप से हम बहुत कुछ सिख सकते है। शिव के स्वरूप को देखें तो मस्तिष्क पर चन्द्रमा है। जो शांति और विशषकर मन की शांति या मन को संतुलित करने की स्तिथि को भी दर्शाता है।
त्रिशूल जो कर्म,वाणी और विचारों के संतुलन को बताता है। ज्ञान प्राप्ति के लिए या विवेक के उच्चतर स्तर पर जाने के लिए संतुलन जरुरी है और संतुलन ध्यान से आता है और शिव ही ध्यान है।
शिव से हम ध्यान से ज्ञान तक के सफर को सिख सकते है। हर दिन हम कुछ न कुछ नया सीखते है और अपने ज्ञान का विकास करते है तो शिवरात्रि पर क्यों न शिव के स्वरुप से कुछ समझा जाए और अपने जीवन में उसे उतारा जाए। शिव रात्रि अमावस्या से पहले आती है और अमावस्या पर मन असंतुलित अवस्था में होता है क्यूंकि चन्द्रमा की कलाओं की तरह मन की कलाएं भी बदलती है। मन अगर संतुलन में आ जाए तो जीवन की लगभग सभी परेशानियाँ ही दूर हो जाए। मन की अस्थिर स्तिथि से बचने का नाम ही शिव है। शिव ही ध्यान है और शिव ही ज्ञान है।
ज्ञान से विवेक बढ़ता है और विवेक से संतुलन स्थापित होता है। हर पर्व, हर त्यौहार हमे कुछ न कुछ सिखाता है। हमे हमेशा ज्ञान अर्जन के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।